लचित बरफुकन , हम्पी, राजा प्रतापादित्य , ललितादित्य, बाजिराव , उड़ीसा का गजपति राजवंश,पांड्य, चोल जैसे कितने ही नाम हैं, जिनको दिल्ली की सल्तनत से आगे ना देख सकने वाली दृष्टि के चलते कभी भी इतिहास में उनका सही स्थान नहीं मिल सका. ऐसा ही एक नाम मालवा की मराठा रानी अहिल्या बाई होल्कर का है, जिन्हें आज भी मालवा के लोग अहिल्या मां के नाम से बुलाते हैं. मराठा इतिहास में पेशवा, गायकवाड़, सिंधिया या शिंदे, होल्कर, भोंसले इन पांच का विशेष महत्त्व है. शिवाजी महाराज द्वारा देखा गया हिन्दू पद्पादशाही का सपना अहिल्या बाई के शासन में एक अलग ही रूप को पहुंचा.सामान्यतः माना जाता है कि १७६१ वह समय था जब मराठों का भारत से दबदबा समाप्त हुआ था, लेकिन अहिल्याबाई का तो राज्य ही १७६६ से शुरू हुआ था. वस्तुतः अहिल्या बाई का शासन मुगलों पर मराठों की निर्णायक जीत का प्रतीक है. अहिल्याबाई ने हिन्दू राष्ट्र के सपने को समग्र रूप में जिया था. उनकी दूरदृष्टि ने देख लिया था कि राष्ट्र केवल सैन्य बल और राजनीतिक सत्ता से नहीं बना करते, उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम, भारत के हर कोने में अहिल्या बाई के बनवाये मंदिरों की गिनती इसकी गवाही देती है. जूनागढ़, अवध, दिल्ली की मुस्लिम सल्तनत को चुनौती देती हुई अहिल्या बाई ने भारत भर के प्राचीन मंदिरों को पुनर्जीवित किया, चाहे वो अयोध्या का जन्मभूमि मंदिर हो या ज्ञान वापी मस्जिद से सटा कर काशीविश्वनाथ की पुनर्प्रतिष्ठा हो,बद्रीनाथ हो, मदुरै का मीनाक्षी मंदिर या नैमिषारण्य, अहिल्या बाई के बनाये हुए अनगिनत मंदिर , घाट और और धर्मशालाएं उनके प्रभाव और वैभव की कहानी कहते हैं.अपने राज्य में निर्माण कार्य कार्य एक अलग बात है, लेकिन सैकड़ों किलोमीटर की दूरी पर , दुसरे राज्यों में, जहां अक्सर मुस्लिम शासकों के राज्य भी थे, मंदिरों के पुनरुद्धार का काम करने के लिए धन के साथ कूटनीतिक चतुराई की भी ज़रूरत होती थी. कहते हैं की सावन में कावंड से गंगा जल ले जाकर शिवजी पर चढाने की परंपरा भी अहिल्या बाई की बनायी हुई है. सम्पूर्ण आर्यावर्त को सनातन धर्म के एक सूत्र में बाँधने का जो काम आध्यात्मिक स्तर पर आदि शंकराचार्य ने किया था वही सामजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक स्तर पर अहिल्याबाई ने किया.
अहिल्या बाई का जन्म ३१ मई ,१७२५ को चौंडी (सतारा के पास) में एक साधारण परिवार में हुआ था. उनके पिता एक गाँव के पाटिल थे. पेशवा के एक प्रमुख नायक मल्हार राव होल्कर ने अहिल्या की क्षमताओं को उनकी बाल्यावस्था में ही पहचान कर अपने पुत्र खांडे राव होल्कर की पत्नी के रूप उनको चुन लिया. मल्हार राव शुरू से ही अपनी पुत्रवधु को राजनीति और युद्ध की शिक्षा देते थे. शायद मल्हार राव आने वाले समय की गति भांप चुके थे. नवाब सफदरजंग से कुम्हेर गढ़ को छुड़ाने की लड़ाई में खांडे राव मारे गए. उस समय फिर एक बार मल्हार राव ने आगे आ कर अपनी पुत्रवधु को सती होने से रोक लिया. १२ वर्ष तक मल्हार राव ने शासन किया और साथ साथ अहिल्याबाई को कुशल योद्धा और शासक होने के गुर भी सिखाये. मल्हार राव की मृत्यु के बाद माले राव होल्कर ने शासन सम्भाला. दुर्भाग्य से साल भर के अंदर माले राव की भी मृत्यु हो गयी. अहिल्या बाई ने पेशवाओं से अपील की कि उनको अपना राज्य सम्हालने की अनुमति दी जाये. अब पेशवा अंग्रेज़ों की तरह “प्रगतिशील ” तो थे नहीं अतः अहिल्याबाई के राज्य पर अधिकार को स्वीकृति मिल गयी. (ऐसी ही स्थिति में “प्रगतिशील” अंग्रेज़ों ने झांसी के लक्ष्मीबाई के राज्य करने को अधिकार को उनके स्त्री होने के कारण नहीं माना था.)
अहिल्याबाई अपनी सेना में में बड़ी लोकप्रिय थीं, क्योंकि वो रानी की तरह सेना के पीछे नहीं योद्धा की तरह आगे आकर सेना का नेतृत्व करती थीं. हाथी पर सवार अहिल्याबाई जब युद्ध केलिए निकलती थीं तो हौदे के चार कोनों में चार धनुष और तरकस होते थे और वे चारों दिशाओं में युद्ध करती थीं. उनकी कूटनीति और विस्तृत पटल पर भारत की राजनीति की समझ के बहुत से उदाहरण मिलते हैं. १७७२ में पेशवा को लिखे एक पात्र मेंवे कहती हैं की अँग्रेज़ों से दोस्ती भालू को गले लगाने के सामान है, जिस प्रकार भालू के आलिंगन से छूटना संभव नहीं होता, उसी प्रकार अंग्रेंज शासकों से सम्बन्ध रखना भी हानिकर ही होगा. चतुर कूटनीतिज्ञ, कुशल योद्धा अहिल्याबाई एक उत्तम राज्य संचालिका भी थीं. महेश्वर में उन्होंने विशेष शैली से कपड़ा बनाने की कला को राजकीय संरक्षण में विकसित किया जो आज भी माहेश्वरी के नाम से देश विदेश में प्रसिद्ध है और भारी मात्रा में निर्यात होता है. अहिल्याबाई के तीस वर्षों के शासन काल में उनकी राजधानी महेश्वर और इंदौर कला और संस्कृति के केंद्र बन गए थे और ये परम्पराएं आज भी वहाँ ज़िंदा हैं. एनी बेसेंट ने अहिल्याबाई के लिए कहा था की अहिल्याबाई के शासन काल में प्रजा सुखी थी, किसान सम्पन्न थे और व्यापार फल फूल रहा था.
निश्चय ही प्लेटो द्वारा वर्णित एक सम्पूर्ण शासक का रूप अहल्याबाई में देखने को मिलता हैं